दीपावली का पर्व अंधकार पर विजय के रूप में मनाया जाने वाला हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार है दीपावली को दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली की कथा के अनुसार दीपावली संस्कृत भाषा के दो शब्दों दीप+आवली से मिलकर बना है जहां दीप का अर्थ दीया से है और आवली का अर्थ श्रंखला या लाइन से है इन दोनों शब्दों को मिलाकर दीपावली शब्द का निर्माण होता है जिसे हम सरल शब्दों में दीपों की श्रंखला या दीपों की लाइन भी कह सकते हैं। हिंदू धर्म में दीपावली के मनाने के विषय में तमाम धारणाएं विधमान हैं जिनमें से एक प्रमुख ये है की जब श्री रामचंद्र जी लंका विजय करके माता सीता भाई लक्ष्मण एवं प्रिय भक्त हनुमान के साथ अयोध्या को लौट कर वापस आ रहे थे तो उस दिन अमावस्या की रात थी जिसकी वजह से अयोध्या में घनघोर अंधेरा छाया हुआ था।
श्री रामचंद्र जी के लंका विजय एवं वनवास काटकर 14 साल बाद वापस अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्या के नागरिकों ने अयोध्या के पूरे नगर में दीपों को जलाकर एवं पटाखों को दाग कर खुशियां मनाई थी। इसलिए तब से आज तक प्रत्येक वर्ष लंका विजय एवं श्री राम जी के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दीपावली को मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग नए नए कपड़े पहनकर शाम को एक दूसरे को मिठाईयां खिलाकर, happy दीपावली बोलकर गले मिलते हैं।इसलिए इस त्यौहार को आपसी सौहार्द को बढ़ाने वाले पर्वों में गिना जाता है।यह त्यौहार भारत देश का एक प्रमुख त्यौहार है इसको भारत के अलावा संसार के जिन हिस्सों में हिंदू धर्म के लोग रहते हैं वहां पर बहुत ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता हैं।इस लेख में हम दीपावली कथा:दीपावली celebrate के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

दीपावली कब है / दीपावली 2022 date
(1)सन 2022 की दीपावली 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी ।वैसे तो दीपावली की शुरुआत 22 अक्टूबर से ही हो जाएगी इस दिन धनतेरस मनाया जायेगा फिर 23 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) फिर 24 अक्टूबर को मुख्य पर्व दीवाली एवं 25 अक्टूबर को गोवर्धन पर्वत पूजा तथा 26 अक्टूबर को अंतिम पर्व भइया दूज मनाया जाएगा।दीपावली कब है 2022 ? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सभी लोग परेशान दिखाई पड़ते थे।तो अब आपलोग जान गए होंगें कि दिवाली कब है।
दीपावली पर्व क्यों मनाया जाता है? दीपावली की कथा
दीपावली या दिवाली मनाए जाने के पीछे हिंदू धर्म में घटित बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं हैं जिनकी वजह से हिंदू धर्म के अनुयाई दीपावली का पर्व मनाते हैं। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि श्री राम जी के लंका से अयोध्या वापस लौटने की प्रसन्नता में कौशल प्रदेश की जनता ने दीप जलाकर अपने घरों को रोशन किया था एवं एक दूसरे से गले मिलकर मिठाईयां खिलाई थी।इसीलिए आज भी इतिहास की उसी परंपरा को निभाते हुए दीप जलाकर एक दूसरे से गले मिलकर मिठाई खिलाकर दीपावली मनाई जाती है। तमाम तरह की अन्य ऐतिहासिक घटनाएं हैं जिनके उपलक्ष में दीपावली का पर्व मनाया जाता है जिसके बारे में आगे हम इस दीपावली blog के माध्यम से विस्तार पूर्वक समझेंगे।
पभु श्री राम के लंका विजय की खुशी में
त्रेता युग में माता सीता को हरने वाले रावण को परास्त करके प्रभु श्री राम जी जब वापस अयोध्या लौटे थे।तब अयोध्या के समस्त नागरिकों ने अपने प्रभु के स्वागत हेतु समस्त नगर में घी के दीपों को जलाकर आपस में मिठाइयां बांटकर अपार खुशियां बनाई थी। उस समय के त्रेतायुग से आज तक यह दीपावली का पर्व प्रत्येक वर्ष मनाया जाता रहा है।
देवी लक्ष्मी के प्रकट होने के उपलक्ष में
सनातन धर्म के तमाम पौराणिक ग्रंथों में देवताओं एवं राक्षसों के सहयोग से समुद्र मंथन की कथा आप सबने सुनी होगी। अगर सुनी है तो आप यह भी जानते होंगे कि इसी समुद्र मंथन के दौरान धन संपदा की देवी माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी। जिसके कारण तीनों लोकों में देवी लक्ष्मी के प्रकट होने की खुशियों को दीप जलाकर मनाया गया था। उसी के क्रम में आज भी माता लक्ष्मी के स्वागत हेतु दीपों को जलाकर प्रत्येक वर्ष खुशियां मनाई जाती हैं और देवी लक्ष्मी की पूजा विधि विधान से की जाती है। हिंदू धर्म के लोगों का मानना है कि दीपावली के दिन धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा करने से आने वाले पूरे वर्ष भर माता लक्ष्मी हमारे घरों में निवास करती रहेंगी।जिसके फलस्वरूप वर्ष भर हमारा जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहेगा।
भगवान श्री कृष्ण के द्वारा नरकासुर को मारने के उपलक्ष में
द्वापर युग भगवान श्री कृष्ण के नाम एवं उनकी महिमा से जाना जाता है।इसी द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने जनता पर अत्याचार कर रहे एक अत्याचारी राजा नरकासुर का नाश दीपावली के दिन ही किया था। नरकासुर वध के उपरांत लोगों ने अपने खेत खलियानों एवं घरों में गाय के घी से दीपों को जलाकर प्रसन्नता व्यक्त की थी। द्वापर युग से दीपों को जलाने की यह परंपरा आज भी चली आ रही है।यही कारण है कि कृष्ण भक्त पूरे वर्ष भर दीपावली पर्व का इंतजार करते रहते हैं और पर्व के आने पर बड़ी धूमधाम से अपने घरों को दीपक एवं झालरों से सजा कर आपस में खुशियां मनाते हैं।
स्वामी महावीर के निर्वाण दिवस के उपलक्ष में
जैन धर्म के मतावलम्बी भी दीपावली के पर्व को बहुत ही उत्साह से मनाते हैं।क्योंकि इसी दिन जैन धर्म के 24 वें तीर्थ कार स्वामी महावीर का निर्वाण हुआ था इसके अलावा स्वामी महावीर के परम् शिष्य गौतम जी का दीपावली के इसी शुभ दिन में जन्म हुआ था।इसीलिए भारत समेत पूरे विश्व भर में जैन धर्म के लोग स्वामी महावीर के निर्वाण दिवस के उपलक्ष में दीपावली का पर्व मनाते हैं। जिसमें वह अपने घरों दुकानों की साफ-सफाई रंग रोगन करके दीपों को जलाकर एक दूसरे को बधाइयां देकर खुशियां मनाते हैं।
स्वर्ण मंदिर के शिलान्यास के उपलक्ष में
भारत में सिखों के सबसे प्रमुख स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास दीपावली के ही दिन 1577 को हुआ था। इनके छठवें गुरु हरगोविंद सिंह जी को इसी दिन मुगल बादशाह जहांगीर ने ग्वालियर की जेल से आजाद किया था।इसीलिए दीपावली का दिन सिख धर्म मैं ऐतिहासिक महत्व रखता है यही कारण है कि दीपावली के पर्व को सिख धर्म के लोग भी पूरे उत्साह और ऊर्जा के साथ मनाते हैं। जिसमें वह अपने गुरुद्वारों मकानों दुकानों आदि की साफ सफाई करके उन्हें अच्छे से रंगीन लाइटों, दीपकों से सजाते हैं और पटाखे फोड़ कर एक दूसरे को मिठाईयां खिलाकर आपस में गले मिलकर एक दूसरे को बधाइयां देते हैं।
मुगल बादशाह अकबर के द्वारा आकाश दीप जलाए जाने के उपलक्ष में
मुगल सल्तनत के सबसे महान राजा अकबर महान ने हिंदुओं और मुस्लिमों में फैली हुई नफरत को खत्म करने के लिए अपने शासनकाल में दीपावली के दिन अपने महल में 40 फीट की ऊंचाई पर एक बहुत बड़े दीपक (आकाश दीप) को जलवा कर पूरे मुगल सल्तनत में दीपावली की खुशियों को मनाने का आदेश दिया था। जिसकी वजह से दोनों संप्रदायों में फैली हुई नफरत खत्म हो गई थी। जिसके कारण मुस्लिम समाज के लोग भी दीपावली के पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाने लगे थे।यह परंपरा आज भी उसी तरह से चली आ रही है आज भी मुस्लिम समाज के बहुत से लोग पूरे हर्षोल्लास से दीपक जलाकर दीपावली की खुशियों में शामिल होते हैं।
आर्य समाज के स्वामी दयानंद जी के मोक्ष प्राप्ति के उपलक्ष में
दीपावली के पर्व को आर्य समाज के लोग भी बहुत ही हर्षोल्लास व धूमधाम के साथ मनाते हैं क्योंकि दीपावली के ही दिन आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद एवं प्रसिद्ध वेदांती स्वामी राम तीरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए आर्य समाज के लोग अपने पूज्य को मोक्ष मिलने के उपलक्ष्य में अपने घरों दुकानों की साफ सफाई करके उनमें दीप जलाकर दीपावली के पर्व को सेलिब्रेट करते हैं।
ऊपर बताए गए इन तमाम ऐतिहासिक कारणों के अलावा दीपावली को मनाने के अन्य कारण भी हैं। हर प्रांत एवं हर शहरों में दीपावली के मनाने के अपने अलग-अलग कारण एवं मान्यताएं विद्यमान हैं।

diwali/deepavali कब मनाई जाती है?:दीपावली time
दिवाली का पर्व आमतौर पर दशहरा पर्व के 21 दिनों के बाद सितंबर या अक्टूबर में पड़ने वाले कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है।अमावस्या के दिन फैले हुए घनघोर अंधकार को खत्म करने के लिए दीपों को जलाकर उजाला किया जाता है। इसीलिए ही दीपावली को अंधकार पर विजय पाने के रूप में मानते हैं। एक तरह से देखा जाए तो दीपावली त्योहारों का एक संगम है जो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीय तक अर्थात 5 दिनों तक मनाया जाता है।जिन के पांच रूप हैं इन पांचों को मिलाकर दीपावली को मुख्य त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। दीपावली के साथ मनाए जाने वाले अन्य त्योहारों को विस्तृत रूप से आगे प्रस्तुत किया जा रहा है जो कि इस प्रकार से हैं-
dhanteras दीपावली
हिंदू धर्म में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस के पर्व को मनाया जाता है। इस दिन सभी हिंदू परिवारों में भगवान धन्वंतरि की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है। इस दिन लोग नए कपड़े, बर्तन, सोने चांदी के गहने, नई गाड़ी एवं अन्य प्रकार के नए सामान को खरीदते हैं। लोगों की धारणा है कि इस शुभ दिन में खरीदारी करना अत्यंत लाभदायक होता है और साल भर घर में सुख समृद्धि बनी रहती है।यही कारण है कि हिंदू धर्म के बड़े-बड़े व्यापारी के घरों व फैक्ट्रियों में नए सामानों एवं मशीनों की खरीदारी धनतेरस के पावन व शुभ मौकों पर ही की जाती है।

नरक चतुर्थी: दीपावली की कथा
धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्थी मनाया जाता है। नरक चतुर्थी मनाए जाने की धारणा यह है कि इस दिन प्रभु श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के एक अत्याचारी राजा का वध किया था। जिस के उपलक्ष में लोगों ने अपने घरों के बाहर 5 दीपक को जलाकर अपनी खुशियां प्रकट की थी। इस तरह से खुशियों को मनाने का क्रम आज तक चला रहा है।इसी के क्रम में इस दिन यानी कि नरक चतुर्थी को यमराज के निमित्त नरक चतुर्दशी का व्रत एवं पूजा की जाती है। इस दिन को छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।
दीपावली celebrate
यह मुख्य त्यौहार है इसके संबंध में ऊपर विस्तार से दीपावली को मनाने के कारणों से आप सबको अवगत कराया जा चुका है। दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती एवं प्रभु गणेश की पूजा प्रमुख रूप से की जाती है। इस दिन घर के बच्चों का मुख्य काम दीपक जलाना,आतिशबाजी करना,घर में दीपावली पर रंगोली बनाना नए कपड़ों को पहनकर एक दुसरे को happy दीपावली बोलना एवं अपने दोस्तों व सहेलियों को शुभ दीपावली messages भेजना, दीपावली night में दोस्तों के संग खेल कूद करना आदि होता है।
गोवर्धन पूजा: दीपावली की कथा
दीपावली की कथा के अनुसार दीपावली के अगले दिन को गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है इस दिन हिंदू धर्म के लोग गाय के पवित्र गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं और भोग लगाते हैं। गोवर्धन पूजा की ऐतिहासिकता के संबंध में हिंदू धर्म के विद्वानों की धारणा है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने स्वर्ग लोक के राजा इंद्र देव के क्रोध से होने वाली अपार वर्षा से धरती के जीवो को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया था। इस तरह से भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से धरती के समस्त जीवो को बचा लिया था। इसीलिए दीपावली के अगले दिन गोवर्धन की पूजा शास्त्रों के दिए गए निर्देशानुसार पूरे विधि विधान से की जाती है।
भैया दूज: दीपावली की कथा
गोवर्धन पूजा के अगले दिन और दीपावली के दूसरे दिन यानी के कार्तिक शुक्ल द्वितीय के दिन भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है।जो कि लगभग लगभग रक्षाबंधन के त्यौहार की तरह होता है। इस दिन बहनें बहुत ही प्यार से अपने भाइयों की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधकर भाइयों को तिलक लगाती हैं और मिठाई खिलाकर भाइयों का मुंह मीठा कराती हैं जिसके एवज में भाइयों द्वारा अपनी बहनों को आजीवन रक्षा करने का वचन व बेहतरीन तोहफा भेंट किया जाता हैं। यह त्यौहार भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है इस त्यौहार का इंतजार बहनें पूरे वर्ष भर किया करती हैं।

हमारे समाज में दीपावली का महत्व: दीपावली की कथा
भारतीय समाज से दीपावली त्यौहार का बहुत ही गहरा संबंध है क्योंकि दीपावली के त्यौहार से आम जनमानस पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार होने के कारण इस त्यौहार के अपने कई प्रमुख महत्व हैं। दीपावली के इन प्रमुख महत्व से आप सब को परिचित कराने के लिए आगे इन महत्वों का विस्तार से वर्णन किया गया है। जिसको पढ़कर आप दीपावली के संबंध में अपनी जिज्ञासाओं को पूर्ण कर सकते हैं।
दीपावली के आध्यात्मिक महत्व
आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में दीपावली लोगों को धर्म के राह पर लाने की शिक्षा देने वाला त्यौहार है।क्योंकि इस त्यौहार का अर्थ ही बुराई पर भलाई की जीत एवं अंधकार पर प्रकाश की जीत है। इस पर्व के कारण लोग अपने सांसारिक कामों को छोड़कर पूरे 5 दिनों तक धर्म-कर्म के कार्य में सम्मिलित होते हैं।और अपने प्रभु का भजन स्मरण करके आध्यात्मिक सुखों की अनुभूति करते हैं। 5 दिनों तक लगातार चलने वाले इस त्यौहार में मनुष्य आगे भविष्य में सत्य की राह पर चलने का संकल्प करता है
दीपावली का आर्थिक महत्व
ऊपर के लेख को पढ़कर आप सभी को जानकारी हो गई होगी कि दीपावली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार है। इस पर्व पर लोग नए कपड़े, नए फर्नीचर,नई गाड़ियां, बर्तन, सोने चांदी के गहने आदि खरीदने पर विश्वास करते हैं। इसलिए इस त्यौहार का आर्थिक महत्व भी काफी ज्यादा हो जाता है क्योंकि दीपावली को भारत के 80% लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या यदि एक साथ में इस त्यौहार के संबंध में कोई खरीदारी करती है तो पूरे देश की मार्केट में रौनक आ जाती है। लोगों के काम में बढ़ोतरी हो जाती है। बाजार की आर्थिक गतिविधियां बढ़ने के कारण आम जनमानस की आर्थिक स्थिति में भी काफी सुधार देखने को मिलता है।
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दीपावली का सामाजिक महत्व: दीपावली की कथा
जैसा कि हम लोग जानते हैं कि इस त्यौहार को पूरे परिवार के लोग आपस में मिलकर एक साथ मनाते हैं। सभी लोग एक दूसरे को मिठाई खिलाकर आपस में गले मिलते हैं। आपने देखा होगा इस त्यौहार मैं सब लोग अपने दोस्तों रिश्तेदारों के घरों पर दीपावली की खुशियां मनाने के लिए जाते हैं। जिसके कारण हमारे समाज का सामाजिक ढांचा मजबूत होता है।इस पर्व की उत्पत्ति ही सामाजिक सद्भावना को जीवित रखने के लिए हुई थी सामाजिक सद्भावना को जीवित रखने के लिए ही अयोध्या के नगर वासियों ने प्रभु के अयोध्या वापसी पर दीपक जलाकर सद्भावना का संदेश दिया था
द्वापर युग में कृष्ण जी ने सामाजिक सद्भावना को बचाए रखने के लिए ही अत्याचारी असुर राजा नरकासुर का वध किया था। दीपावली मनाए जाने के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानकर हम यह कह सकते हैं कि दीपावली का पर्व हमारे समाज की सामाजिक संरचना को मजबूत करने वाला पर्व है।